Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ५ ) उत्तरपक्षी-हां हैमी नाम माला अनेकार्थीय हेमाचार्य कृत में श्लोक है यथा वीतरागो जिनः स्यात् जिनः सामान्य केवली । कंदों जिन स्स्यात् जिनो नारायण स्तथा १ ___ अर्थ-वीत राग देव अर्थात् तीर्थ कर देव
को जिन कहते हैं, सामान्य केवली को भी जिन कहते हैं,कंद ( काम देव ) कोभी जिन कहते हैं,नारायण (वासु देवको) भी जिन कहत हैं ? बस इन पोंक्त चार कारणों से सिद्ध हुआ कि द्रोपदी ने जैनमन के अनुसार मुक्ति के हेतु बीन राग की मूर्ति नहीं पूजी है पर्वपक्षी-चुप ?
उत्तरपक्षी-इस पाठले हमारे पूर्वोक्त कथन की एक और भी सिद्धी हुईकि हम जो चौदहने प्रश्न अम्बड़ जी के अधिकारमें लिख आयडेंकि