Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १०७ ) उत्तर पक्षी-लो इस का भी पाठ और पाठ से मिलता अर्थ लिख दिखाते हैं। ___तएणसे चमरे असुरिंदे असुरराया उहिं पउ जइरत्ता मम उहिणा आभोएइत्ता इमेयारुवे अज्झथिए जोव समुप्यज्जित्था एवं खलु सम णे भगवं महावीरे जंबूदीवे २ भारहेवासे सुस मार पुर नगरे असोगवणसंडे उज्जाणे असोग वर पायवस्स अहे पुढविशिला पट्टयंसि अट्टम भत्तं पगिहिना एगराइयं महापडिम उवसं पज्जित्ताणं विहरइ तंसेयं खलु मे समणं भगवं महवीरं निस्साए सकिंदें देविंदे देवरायंसयमेव अच्चासायत्तएतिकटु॥
अर्थ-तबते चमर असुरइंद्र असुरराजा अब घि ज्ञान करके महावीर स्वामीजी गौतम ऋषि को कहते भये कि मेरे को देख के एतादृश