Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak

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Page 216
________________ रहने को मानते हैं अर्थात् मुक्ति के साधक धन और कामनीके त्यागी सत्गुरुओंकी संगत करके शास्त्र द्वारा जड़ चेतन का स्वरूप सुन कर सांसारिक पदार्थों को अनित्य (झूठे) जान कर उदासीन होकर सत्य सन्तोष दयादानादि सुमार्ग में इच्छा रहित चल कर काम क्रोधादि अपगुणोंके अभाव होने पर आत्मज्ञानमें लीन होकर सर्वारम्भ परित्यागी अर्थात् हिंसा मिथ्यादि के त्याग के प्रयोग से नये कर्म पैदा न करे और पुरःकृत (पहिले किये हुए) कर्मों का पूर्वोक्त जप तप ब्रह्मचर्यादि के प्रयोग से नाश करके कोंसे अलग होजाना अर्थात् जन्म मरण से रहित होकर परमपवित्र सच्चिदानन्द रूप परमपदको प्राप्त हो ज्ञानस्वरूप सदैव पर मानन्दमें रमन रहनेको मोक्ष मानते हैं ।

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