Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
View full book text
________________
सत्योपदेश यथा वृद्धि करते हुये देशांतरों में विचरते रहना एक जगह डेग बना के मुकाम का न करना.गेली वृत्तिवालोंको नाधु मानने हें ८-थावक(शास्त्र सुननेवाले)
गहस्थियों का धर्म। ८-श्रावक पति नर्वसभापितमत्रानुसार सम्यग दृष्टि में दृद हाकर धर्म मर्यादा में चलनेवालों को मानते हैं अर्शन प्रात काल में परमश्वर का जार र प पाट करना अभयदान सुपात्रदान का दना नायंकालादिमन्नामायिक का करना जटका न चालना, कानन नालना, जुटी गवाही का न देना, चालान करना, पर जी का नमन नना, प्रियान परपरको गमन न करना अमान अपने पनि अगिरिक
-
-