Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ११ )
शास्त्रोक्त जड़ चेतन के विचार से वृद्धि को निर्मल करने में जीव रक्षा सत्य भाषणादि धर्म में उद्यम करने को कहते हैं ॥ यथा :दोहा - गणवनों की वंदना, अवगुण देख मध्यस्थ
दुखी देख करुणाकरे, मंत्रीभाव समस्त ? अर्थ-पुत्रक गुणोंवाले साधा श्रावकों को नमस्कार करे और गुण रहित से मध्यस्थभाव रहे अर्थात् उन पर राग न करे २ दुखियों को देयके का क्या करे अर्थात् अपना कल्प धर्म के यथा यक्ति उनकुन निवारन करे ३ मैत्री सर्व जीवों में
नित नहीं ॥ २ ॥
अर्थात् किसी का बुरा
१०-- यात्रा धर्म ।
1०-यात्रा पर