Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 220
________________ ( १० ) सवपुरुषोंको पिता बंधु के तुल्य समझना (यूत) जएका न खेलना,मांसका न खाना,शराबका न पीना, शिकार (जीवघात) का न करना, इतना ही नहीं है वरंच मांस खाने, शराब पीनेवाले, शिकार (जीव घात) करने वाले को जातिमें भी न रखना अर्थात् उसके सगाई ( कन्यादान ) नहीं करना, उसके साथ खानपानादि व्यवहार नहीं करना, खोटा वाणिज्य न करना अर्थात् हाड़, चाम, जहर, शस्त्र आदिक का न वेचना और कसाई आदिक हिंसकों को व्याज पैदाम तक काभी न देना क्योंकि उनकी दुष्ट कमाई का धन लेना अधर्म है ॥ ६--परोपकार। ९-परोपकारसत्य विद्या(शास्त्रविद्या) सीखने सिखाने पूर्वोक्त जिनेन्द्र देव भापित सत्य

Loading...

Page Navigation
1 ... 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229