Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १४१ ) गणधर कृत सूत्रों की तरह प्रमाणीक नहीं हैं इत्यर्थः ।
हे भ्राता जिस २ सूत्र में से पूर्वपक्षी चेइय शब्द को ग्रहण करके मूर्ति पूजा का पक्ष ग्रहण करते हैं उस २ का मैंने इस ग्रंथ में सूत्र के अनुसार संवन्ध से मिलता हुआ पाठ और अर्थ लिख दिखाया है, इसमें मैंने अपनी ओर से झूठी कुतों का लगाना छति अछतिनिंदा का करना गालियों का देना स्वीकार नहीं किया है क्योंकि मैं झूठ बोलने वाले और गालियें देने वालों को नीच बुद्धि वाला समझती हूं।
(२४) पूर्वपक्षी-क्योंजी कहीं जैन सूत्रों में __ मूर्ति पूजा निषेध भी किया है।