Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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उत्तर - गप्प है क्योंकि लोंके ने तो पुराने शास्त्रों का उद्धार किया है नतो नया मत निकला है न कोई नया कल्पित ग्रंथ बनाया है और लवजी स्थिला चारी यतियोंका शिष्य था उसने प्रमाणीकसूत्रों को पढ़कर स्थिलाचारियों का पक्षछोड़के शास्त्रोक्त क्रियाकरनी अंगीकार की है लवजी ने भी न कोई नयामत निकाला है न कोई पीताम्बरियों की तरह अपने पोल लकोने को अर्थात् अपनेचाल चलनके अनूकूल नये ग्रंथ बनाये हैं हां यह संवेग पीतांबर ( लाडा पंथ ) अनुमान अढाई सौबर्ष से निकला है । पूर्वपक्षी - आपके उक्त कथनमें कोई प्रमाण है उत्तरपक्षी - प्रमाण वहुत हैं प्रथम तो आत्माराम कृत चतुर्थ स्तुति निर्णय भाग २ संवत - १९५२ वि० सन् १८९५ में अहमदाबाद के