Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak

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Page 213
________________ "ॐ श्रीवीतरागायनमः जैनधर्म के नियम। १-परमेश्वर के विषय में। १-परमेश्वरको अनादि मानते हैं अर्थात् सिद्धस्वरूप, सच्चिदानन्द, अजर, अमर, निराकार, निष्कल, निष्प्रयोजन, परमपवित्र सर्वज्ञ, अनन्तशक्तिमान् सदासर्वानन्द रूप परमात्मा को अनादि मानते हैं॥ २--जीवा के विषय में। २-जीवोंको अनादि मानते हैं अर्थात् पुण्य पाप रूप कमां का कर्ता और भोक्ता संसारी

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