Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १३८ ) तो क्या ऋषभदेवजी के निर्वाण पर ३० , ४० क्रोड़ भी न होते क्या लाखोंभी नहोते कुल ८४ हजार बस क्रोड़ों साधु एक समय (एक वक्त ) एक ऋषि की संप्रदाय भर्तादि १०क्षेत्रोंमें नहीं होसक्ते हैं,यह सब मनमानि आँखमीच ग्रंथकर्ता गप्ये लगाते आये हैं, ऐसे मिथ्या वाक्योंपर मिथ्याती ही श्रधान करते हैं।
हमारे मतमें तो सूत्रानुसार नियुक्तिमानी गई है जो नंदी जी तथा अनुयोग द्वार सूत्रमें लिखी है यथा सूत्र। __ सुतथ्थोखलु पढमो,बीओ निज्जुति मिसओ भणिओ ॥ तइओएनिरविसेसो, एसविहीहोइ अणुओगो॥१॥ अर्थ
प्रथम सूत्रार्थ कहना द्वितीय नियुक्तिके साथकहनाअर्थात् युक्तिप्रमाणउपमा(दृष्टान्त)