Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ११० ) पूजा का आरम्भ मुक्ति का पंथ सिद्ध होगया अरे भाई जो मूर्ति का शरणा लेना होता तो सुधर्म देव लोक में भी मूर्तिये थी वहां ही शरणाहोजाता मृत मंडल में भागा क्यों आता नहींतो तुमही पाठ दिखलाओ जहां चमरेन्द्रने मूर्ति का शरणा लिया लिखाहो।
पूर्वपक्षी-अजी तुमने (अरि हंतचेयाइणिवा) इस का अर्थ अरिहंत चैत्यपद यह किस पाठ
से निकाला है ____ उत्तरपक्षी-जिस पाठ से तुम मूर्ति पूजकोंने
देवयं चेइयं का अर्थ प्रतिमा वत् ऐसे निकाला है क्योंकि सूत्रों में ठामर जहां अरिहंत देव जीको तथा,साधु गुरुदेवजीको वंदना नमस्कार का पाठ आता है,वहाऐसा पाठ आता है (तिखुत्तो अया हिणं पयाहिणं करि त्तावंदामिनर्म