Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १३५ ) उसकीधनाढयता हुई,ऐसे ही जिसका कथन प्रमाणीक सूत्रके मूल में नाम मात्र भी नहो और उसका सूत्र कर्ता के अभिप्राय से संबंध भी नहो उसका कथन टीका नियुक्ति भाष्य चरणी में सविस्तार कर धरना यथा इन पूर्वोक्त मूर्ति पूजक स्थिलाचारी आचार्यकृत शत्रुजय महात्म्य, आदि ग्रंथों में गपौड़े लिखे हैं। __ सेतुज्जे पुडरीओ सिद्धो, मुणि कोडिपंच संज्जुत्तो,चित्तस्स पूणीमा एसो,भणइ तेण पुंडरिओ ॥१॥
भावार्थ-ऋषभदेवजी का पुण्डरीक नामे गणधर पांचक्रोड़ मुनियों के साथ शत्रुजय पर्वत ऊपर सिद्धि पाया अर्थात्मोक्ष हुआ चेत शुदि पूर्णिमा के दिन तिस कारण से शत्रुजय का नाम पुण्डरीक गिरि हुआ,ऐसे ही नमि विनमि