Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १३४ ) सूत्र में तो यह लेख स्वप्नान्तर भी नहीं है तुम झूठ बोलकर सूत्रोंके नामसे क्यों मूखौंको फंसाते हो क्योंकि नवमे अध्ययन की ६२ गाथा हैं उसमें यह गाथा है ही नहीं तब कहते हैं हां उत्तराध्ययन आवश्यक सत्र में तो नहीं है उत्तराध्ययन की और आवश्यककी नियुक्तिमें है अथवा कथा (कहानीयों) में है, भला पहिले ही क्यों न कह देते कि पूर्वोक्त नियुक्ति में है, परन्तु जिनोंने जड़ पदार्थ में परमेश्वर बुद्धि स्थापन कर रखी है उनको तो झूठ ही का शरण है वैसे ही ग्रन्थों के प्रमाण देकर उत्तर देते हैं ॥ यथा
किसी ने पूछा कि तुम्हारे घर में कितना धन है तो उत्तर दिया कि मेरे जमाइ के मांवसा के साले के घर ५० लाख रुपया है, भला यह