Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १३० ) पूर्वपक्षी-इसमें क्या प्रमाण है कि ३२ सूत्र मानने और न मानने,
उत्तरपक्षी-इसमें यह प्रमाण है कि सूत्र नंदी जीमें लिखा है कि १० पूर्व अभिन्न बोधीक वनाये हुए तो सम सूत्र अर्थात् इसते कमती के वनाये हुए असमंजस क्योंकि १० पूर्व से कम पढ़े हुए के वनाये हुए ग्रथों में यदि किसी प्रयोगसे मिथ्या लेखभी होय तो आश्चर्य नहीं यथा :
सुत्तं गणहर रइयं, तहेव पत्तेय वुद्ध रइयंच॥ सुयकेवलीणारइअं,अभिन्नदशपुटिवणारइयो। ____ अर्थ-सूत्र किस को कहते हैं गणधरों के रचाये हुये को तथा प्रत्येक बुद्धियों के रचे हुये को श्रुत केवली के रचे हुये को १० पूर्व संपूर्ण पढ़े हुये के रचे हुये को इत्यर्थः ताते ३२ सूत्रतो