Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ११८ ) हैं ही क्योंकि भगवत का उपदेश निरवद्य है यथाश्रीमदआचाराङ्गजी सूत्र प्रथम श्रुत,स्कंध चतुर्थ अध्ययन सम्यक्त्वसार नामा प्रथम उदेशक। . सेवेमि जेय अतीता जेय पडुपणा जेय आग मिस्साअरहंतभगवंताते सव्वे एव माइ खंति एवं भासंति एवं पणवेंति एवं परूति सव्वे पाणा सव्वे भूया सव्वे जीवा सव्वे सत्ता ण हत्तव्वा णअझावे यव्वा णपरिघे यव्वा णउद्दवे यव्वा एसधम्मे सुद्धेः णितिए सासए समन्च लोयं खेदणेहि पवेदिते :__ अर्थ-गणधरदेव सूत्र कर्ता कहते भये ज अतीत काल जे वर्तमानकाल आगामि काल अर्थात् तीन काल के अरिहंत भगवंत ते सर्व ऐसे कहते हैं, ऐसे भाषते हैं ऐसे समझाते हैं