Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ७१ ) व्यवहार से कहते आते ह, अथवा भद्रबाहु स्वाभीजीके पीछे तथा वारावर्षी कालके पीछे लिखने लिखाने में फर्क पड़ा हो अतः (इसी कारण) जो हमने अपनी बनाई ज्ञान दीपिका नाम की पोथी संवत् १९४६ की छपी पृष्ठ६८ में लिखा था कि मूर्ति खण्डन भी हठहे (नोट) वह इस भ्रम से लिखा गया था कि जो शाश्वती मूर्तिये हैं वह २४ धर्मावतारोंमेकीहैं उन का उत्थापक रूप दोष लगनेकेकारणखण्डन भी हठ है,परतु सोचकर देखागया तोपूर्वोक्तकारण से वह लेख ठीक नहीं और प्रमाणीक जैन सूत्रों में मूर्ति का पूजन धर्म प्रवृत्ति में अर्थात् श्रावक के सम्यक्तव्रतादि के अधिकारमें कहीं भी नहीं चला इत्यर्थः।