Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ८५ ) पूजक ऐसाअर्थ करतेहैं णणत्थ अरिहंतेवा अरिहंतचेयाणिवा (गणत्थ) इतना विशेष इनके सिवाय और को वंदना नहीं करनी किनके सिवाय (अरहंतेवा)अरिहंतजी के (अरिहंतचेइयाणिवा) अरिहंत देवकी मूर्तिके अव समझने कीवात है कि श्रावकने अरिहंत और अरिहंतकी मूर्ति को वंदना करनी तोआगार रक्खी और इनकेसिवा सवको वंदना करनेका त्याग किया तो फिर ग
धरादि आचार्य उपाध्याय मुनियों को वंदना करनी बंद हुई क्योंकि देवको तो वंदनानमस्कार हुई परन्तुगुरुको वंदना नमस्कार करनेकात्याग हुआक्योंकि अरिहंत भी देव और अरिहन्तकी मूर्तिभीदेव,तो गुरु को वंदना किस पाठसे हुई तातेजो प्रथम हमनेअर्थ किया हैवही यथार्थह ।
पूर्वपक्षी-निरुत्तर होकर ठहर२ के वोला