Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ३ )
ततेणंसे पोक्खली समणोवासए, जेणेवपोसह साला, जेणे व संखे समणोवासए तेणेव उवागच्छ२इत्ता गमणागमणे पडिकम्मइ पडिकम्मईत्ता, संखं समणोवासयं वंद इनमंसइ, वंदइनमं सइत्ता एवं वायसी अर्थ ।
(ततेणं) तवते पोखली नाम समणोपासक (श्रावक) जे० जहां पोषधशाला जे० जहां संख नामा समणोपाशक (श्रावक ) था (तेणेव ) तहां उवा आवे आविने गम० इरिआवहीका ध्यान करे करके संखं० संखनामा श्रावकको (वंदइन मं सइरत्ता) वंदना नमस्कार करे करके ( एवंववासी) ऐसे कहता भया ॥ पूर्वपक्षी - -भला इसका अर्थ तो आपने कर दिखलाया परन्तु (णणत्थ अरिहंतेवा अरिहंत चइयाणिवा ) इसका अर्थ क्या करेंगे ।