Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ८० )
(मोगरपाणी पडिमा ) हरिणगमेषी पडिमा इत्यादि तो फिर किस करतूती पर चेइय शब्द का अर्थ मूर्ति २ पुकारते हो,
(१५) पूर्वपक्षी उपासक दशा सूत्रमें आनंद श्रावकने मूर्तिपूजी है।
उत्तरपक्षी - भला तो पाठ लिख दिखाओ लुको के (छिपाके) क्यों रक्खाहे
पूर्व पक्षी -- लो जी लिखदेते हैं ( प्रगट करदेते हैं) नो खलुमे भंते कप्पइ अज्ज पभी इचणं अणउथिए वा अण उध्थिय देवयाणि वा अणउध्धिय परि ग्गहियाई वा अरिहंत चेड़ याईवा वंदितएवा नमंसित्तएवा ॥
उत्तरपक्षी - बसयही पाठ इसीपै मूर्तिपूजा कहतेहो इसका तो खण्डन हमअच्छी तरह अभी ऊपर लिखचुके हैं फिर पीसेका पीसना क्या ॥