Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ८८ ) और यहां(अरिहंचेइय) यह पाठ प्रक्षेप अर्थात् नया डालाहुआ सिद्धहोताहै,क्योंकि किसीप्रति में है वहुलताई प्रतियोंमें नहीं है और उपासक दशाअंगरेजो तरजुमेमेंभी लिखाहै,कि यहपूर्वोक्त पाठ नयाडाला हुआ है,यथा उपासक दशासूत्र जिस्का ए एफ.रुडोल्फहरनलसाहिबनेअंगरेजी में तरजुमा कियाहै जोकि ई०सन् १८८५ में
सियाटिक सोसाइटी बङ्गाल कलिकत्तामेछपा है पृष्ठ २३ मूल ग्रन्थ नोट १० ओर तर्जुमा पृष्ठ ३५ नोट९६ में यह लिखता है कि शब्द चेझ्याई ३ पुस्तकों में पाया अर्थात् विक्रमी संवत् १६२१ की लिखी में संवत् १७४५ की संवत्१८२४ की में चेइयाइं ऐसा पद है और २ पुस्तकों में अर्थात् संवत् १९१६ की संवत् १९३३की में अरिहंत चेइयाइं ऐसा पद है