Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( २ ) (अस्थि) गेरने जातेथे और ऐसे नशेबाज बावों को मत्था टेकते थे येही तारक हैं क्योंकि उन्हें अभ्यन्तर वृत्तिकी तो खबर नहीं पड़ती कि हमारे बडे. व्यवहार मात्र क्रिया करते थे तथा श्रावक पद को नमस्कार करते थे तांते मिथ्या त्वको उन्नति देनेका हेतु जानके बन्दना करनी कल्पै नहीं। इत्यर्थः।
पूर्वपक्षी-क्या श्रावकों को श्रावक वन्दना किया करते हैं जो अम्बड श्रावकको न करी ।
उत्तरपक्षी-हां जिनमार्गमें वृद्ध (बड़े)श्रावकों को वन्दना करनेकी रीति है। पूर्वपक्षी-क्या किसी सूत्रमें चली है ।
उत्तरपक्षी-हां सूत्र भगवती शतक १२ मा उद्देशा १ संखजी श्रावक को पोखलीजी श्रावकने नमस्कार करी है यथा सूत्र॥