Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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(८. ) पूर्वपक्षी-इस अर्थ की सिद्धि में कोई दृष्टांत साक्षी है।
उत्तरपक्षी-हां २ सूत्र भगवती शतक २५ मा ६ नियंठों के अधिकारमें.६ नियठों में द्रव्ये तीनों लिंग कहे हैं सलिंग १अन्यलिंग २ गृहि लिंग ३ अर्थात् भेवतो चाहे सलिंगी जिन भाषित रजो हरण मुख वस्त्रिका सहित होय ? चाहे अन्य लिंगी दंड कमण्डलादि सहित होय २ चाहे गृहिलिंगी पगड़ी जामा सहित होय परन्तु भावें सलिंगी है, अर्थात् जिन आज्ञा नुसार संयम सहित है इत्यादि इतका तात्पर्य यह है कि किसी अन्य लिंगवाले साधुने अरि हन्त का ज्ञान अर्थात् भगवान ने अपने ज्ञानमें जिस संयन वृत्ति को ठीक जाना है और कहा है उस आज्ञानुसार संयमको ग्रहण करलिया