Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ७८ ) अन्ययुत्थिक शाक्यादि साधु १ (अण) पूर्वोक्त अन्य युत्थिकों के माने हुये देव शिवशंकरादि २ (अणउत्थिय परिग्गहियाणिवाअरिहंतचेड्य) अन्य युत्थिकों में से किसी ने(परिग्गहियाणि) ग्रहण किया (अरिहंतचेइय) अरिहंतका सम्यक ज्ञान अर्थात् भेषतोहे,'परिव्राजक शाश्यादिका और सम्यक्त्वव्रत,वा अणुव्रत,महाव्रत रूप धर्म अंगीकार किया हुआ है जिनाज्ञानुसार ३ इन की (वदितएया) वंदना (स्तुति) करनी (नमं सितएवा)नमस्कारकरनी यावत (पज्जपासित एवा)पर्युपासना(सेवा भक्ति काकरना)नहींकल्प पूर्वपक्षी-यह अर्थ तो नयाही सुनाया।
उत्तरपक्षी-नया क्या इसपाठका यही अथ यथार्थ है।