Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
View full book text
________________
( ६६ ) नमम्कार है और जो नमो थुणंका पाठ पढ़ना है इससे जो तीर्थंकर और तीर्थंकर पदवी पा कर परोपकार करके मोक्ष हुये हैं उन्हीं को नमस्कार है । इत्यर्थः॥
(११) पूर्वपक्षी-यह तो आपने ठीक समझाया परंतु एक संशय और है कि जो मूर्ति को न माने तो ध्यान किस का धरे और निसाना कहां लगावे?
उत्तरपक्षी-ध्यान तो सूत्रस्थानांगजी उवाई जी आदि में चेतन जड़ तत्त्व पदार्थका पृथक २ विचारने को कहा है अर्थात् धर्मध्यानशक्लध्यान के भेद चले हैं परंतु मूर्ति का ध्यान तो किसी सूत्र में लिखा नहीं हां ध्यान की विधि में ना सायादि पै दृष्टिका ठहराना भी कहा है परंतु हाथों का बनाया बिम्ब धर के उस का ध्यान