Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ६८ ) पूर्वपक्षी-भला क्या तुम नहीं जानते हो।
उत्तरपक्षी-भला जानते तो क्या कहते हुये हमारी वृत्ति बिगड़ जातीअर्थात् इस श्रद्धा वाले (चैतनपूजक) गृहस्थियोंके द्वारे भिक्षा न मांग खाते जड़पूजक गृहस्थियों के द्वारे भिक्षा मांग खाते।
पूर्वपक्षी-कहते हैं कि सूत्र राय प्रश्नी, उपासकदशांग, उवाई, ज्ञाता धर्मकथा, भगवती जी आदिक में लिखा है। _उत्तरपक्षी-ओहो तुम सावद्याचार्योंके लेख के धोखे में आकर और सूत्रकारों के रहस्य को न जाननेसे ऐसे कहते हो कि सूत्रोंमें मूर्तिका पूजन धर्म प्रवृत्तिमेंलिखा है लो अब जहांजहां सूत्रोंमें से मूर्तिपूजनका भ्रमहै वहां २ का मूल पाठ और अर्थ लिखके दिखा देतीहूं कि यहतो