Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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___ ( ६५ ) नमो त्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं आदि गराणं तित्थ गराणं जाव संपत्ताणं नमोजिनाणं
जीयेभयाणं॥ ___ अर्थ-नमस्कार हो अरिहंत भगवंत जी को
जो धर्मकी आदि करके चार तीर्थ अर्थात साध १ साध्वी २ श्रावक ३ श्राविका ४ इनकी धर्म रीति रूप मुक्ति मार्ग करके यावत् (जहां तक) सिद्ध पद में प्राप्ति भये ऐसे जिनेश्वर को नमस्कार है जिन्हों ने जीते हैं सर्व संसारीभय (जन्म मरणादि) अर्थात् पूर्वले तीर्थंकर पद के गुण ग्रहण करके सिद्धपदमें नमस्कार कोजाती है क्योंकि अनंत ज्ञानादि चतुष्टय गुण तीर्थकर पद में थे वह गुण सिद्धपद में भी मोजूद हैं और यह भी समझ रखना कि जो नमो सिद्धार्ण पाठ पढ़ना है इस से तो सर्व सिद्धपदको