Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ५६ ) श्वर का स्वरूप तथा तीर्थं कर देवका अर्थात् धर्मावतारों का अनन्त चतुष्टय ज्ञानादि एक सम स्वरूप सुना उसी वक्त हृदयमें अर्थात् मतिमें नकला, होजाता है वह मरणपर्यत नहीं विसरता तो फिर पत्थरका नकसा (मूर्ति) को क्या करेंगे जिसके लिये नाहक अनेक आरम्भ उठाने पड़ें।
(८) पूर्वपक्षी-भला किसी बालकने लाठी को घोड़ा मान रक्खा है तुम उसे घोड़ा कहो कि हे बालक अपना घड़ा थाम ले तो तुमे मिथ्या बाणीका दोष होय कि नहीं। . __उत्तरपक्षी-उसेघोडाकहनेसेतोमिथ्यावाणीका दोष नहीं क्योंकि उस बालकने अज्ञानता से उसको घोड़ा कल्प रक्खाहै तातें उस कल्पना को ग्रहके घोड़ा कह देते हैं परंतु उसे घोड़ा