Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ५५ ) महात्मा १४।१४ पूर्वकेविद्याके पाठी औरबह्वागम पाठी थे वे कौनसे पोथीयों के गाडेलिये फिरे थे वे तो कंठाग्रसे ही गुरु पढ़ाते थे और चेले पढ़ते थे परन्तु हमलोक कलिके जीव अल्पज्ञ विस्मृति बुद्धिवाले पढ़ा हुआ भूल २ जाते हैं ताते जो अक्षरोंके रूप पूर्वोक्त निमित्तोंसे सीखे हुये हैं उनका रूप पहचानकर याद में लाते हैं यों वाचते हैं।
पूर्वपक्षी-हम भी तो भगवानकास्वरूप भूल जाते हैं ताते मूर्तिको देखके याद करलेते हैं। ___ उत्तर पक्षी-अरे भोले भगवान् का स्वरूप तो विद्वान् धार्मिक जनोंको क्षणभर भी नहीं भूलता है क्योंकि जिस वक्त गुरुमुखसे शास्त्र द्वारा सिद्ध स्वरूप सच्चिदानन्द अजर अमर नराकार सर्वज्ञ सदा सर्वानन्द रूप परमे