Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( २६ ) वत) आकार (नकसा) देखनेसे ज्यादा और जल्दी समझ आती है यह तो हमभी मानते हैं परन्तु उस आकार (नकसे) को वंदना नमस्कार करनी यह मतवाल तुम्हें किसने पीलादी । - पूर्वपक्षी-जो चीज जिसलायक होगी उस का आकार (नकसा) भी वैसे ही माना जाय गा अर्थात् जो वन्दन योग्य होंगे उनका आकार (मूर्ति) भी वन्दी जायगी ॥ — उत्तरपक्षी-यह तुम्हारा कहना एकांत मूख ताई का सूचक है, क्योंकि तम जो कहते हो जो चीज जिस लायक हो उस की मूर्ति भी उसी तरह से ही मानी जायगी, अर्थात् जो वन्दने योग्य होगें, उनकी मूर्ति भी वन्दी जायगी,तो क्या जो चीज खाने के योग्य होगी उस की मूर्ति भी खाई जायगी जो असवारी