Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ४३ ) मित्र आवे तो उसके लिये पलंग विछादे मीठा भात करके थाल लगाके अगाड़ी रखदेकि लो जीवों और वहुत खातिर से पेश आवे यदि मित्र की मूर्ति बनी हुई आवे तो उसे देखकर खुशी तो मोह के प्रयोग से भले ही होजाय परंतु पलंग तो मूर्ति के लिये दौड़के न विछाये गा, न मीठे भात बनवाके थाल आगाडी धरे गा यदि धरे गा तो उस को लोग मूर्ख कहेंगे और उपहास करेंगे ऐसेही भगवान की मूर्ति को देखके कोई खुश हो जाय तो हो जाय परन्तु नमस्कार कौन विद्वान करेगा, और दाल चावल लौंग इलाची अंगूर नारंगी कौन विद्वान् खाने को देगा अर्थात् चढ़ावेगा सिवा
बाल अज्ञानियों के । यथा :___ गीत चाल लूचेकी, कूक पाडे सुनता नाही