Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ४० ) मानते कि यह नकल है, अर्थात् रेत को खांड थाप के खाय तो क्या मुंह मीठा होय ऐसा ही पाषाण को राम मान के क्या लाभ होगा परंतु में पूछता हूं कि तुम नाम लेते हो भगवान् २ पुकारते हो, इस से क्या लाभ होगा अर्थात् खांड २ पुकारने से क्या मुंह मीठा हो जायगा।
उत्तरपक्षी-हम तो नाम भी तुम्हारीसी समझकी तरह नहीं मानते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि बिना गुणोंके जाने, बिना गुणों के याद में ग्रह नाम लेने से कुछ लाभ नहीं यथा राम राम रटतयां बीते जन्म अनेक तोते ज्योरटना रटी सम दम विना विवेक ? अपितु हम तो पूर्वोक्त गुणनिष्पन्न नाम अर्थात् गुणानुबंध (गुण सहित ) नाम लेते हैं सोभाव में ही