Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ५० ) हमाराही मत है तुम नामनिक्षेप मानना किस अर्थसे कहते हो हेभाई नाम तो गुणोंमें शामल ही माना जाता है जैसे कोई पार्श्वके नाम से गाली दे तो हमे कुछ द्वेष नहीं कई पार्श्व नाम वाले फिरते हैं यदि पार्श्वजी के गुण ग्रहण करके अर्थात् तुम्हारा पार्श्व अवतार ऐसे कह के गालो दे तो द्वेष आवे कि देखो यह कैसा दुष्ट बुद्धि है जो हमारे धर्मावतारको निंदनीय वचनसे बोलता है ताते वह नाम भी भाव में ही है यथा दृष्टान्त किसी देशके राजाके बेटे का नाम इन्द्रजीत था और एकराजाके महलों के पीछे धोबी रहता था उसके बेटेका नामभी इन्द्रजीत था एकदा समय वह धोबीका बेटा काल वस होगया तो वह धोबी विलाप करके रोने लगा कि हाय २ इन्द्रजीत हाय शेर इन्द्र