Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ५२ ) तो तुम अपने घर के बालवच्चे स्त्री आदिक नगर देशके सब लोगोंके सन्मुख पोथीके अ. अक्षर कर दिया करो बस वे अक्षरोंको देख के,ज्ञानी होजाया करेंगे फिरपाठशाला (स्कूल) मदरसों में पढ़वानेकी क्या गर्ज रहेगी हेभोले किसी अनपढेके आगे अक्षर लिख धरे तो वह अक्षरोंकी स्थापना (आकार) नकसा देखके ज्ञान प्राप्त कर लेगा अर्थात् सूत्र पढ़ लेगा अपितु नहीं तो फिर तम कैसे कहते हो कि पोथीसे ही ज्ञान होता है।
पूर्व पक्षी हम तो यही समझरहे थे कि पोथी से ही ज्ञान होता है परन्तु तुमही बताओ कि भला ज्ञान कैसे होता है।
उत्तर पक्षी तुम्हारी मति तो मिथ्यात्व ने विगाड़ रकरवी है तुम्हारे क्या वस की बात है