Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ४१ ) उपदेशमें नहीं हैं कि ऐसे करो उपदेशतो सूत्रों में ऐसा होताहै कि हिंसा मिथ्यादि त्यागने के योग्य हैं इनके त्यागने से ही तुम्हारा कल्याण होगा और दया सत्यादि ग्रहण करने के योग्य हैं इनके ग्रहण करने से कर्म क्षय होंगे और कर्म क्षय होने से मोक्ष होगा इत्यादि ॥
(१) पूर्वपक्षी-यह तो सब बातें ठीक हैं परंतु हमारी समझमें तो जो वंदने नमस्कार करने के योग्य है उस मूर्तिको भी नमस्कार करी ही जायगी।
उत्तर पक्षी-यह भूल की बात है क्योंकि वंदना करने योग्यको तो वंदना करी जायगी। परंतु उसकी मूर्ति को पूर्वोक्त कारणोंसे कोई विद्वान् नमस्कार नहीं करता है यथा नगरका राजा कहींसे आवे वा कहीं जाय तो उसकी