Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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के योग्य होगी, उस की मूर्ति पे भी अनवारी होगी जैसे आसका फल खाने योग्य होता है. और उसकी मूर्ति अर्थात् किसी ने मिट्टी का काठका, कागज का रुका आस बना लिया तो क्या वह भी खाने योग्य होगा किसी ने मिट्टी का काष्ठका घोड़ा बनाया तो क्या उस पै असवारी भी होगी अथवा पर्वत का नकमा देखें तो क्या उसकी चढ़ाई भी चढे समुद्र का नकसा देखें तो क्या उसमें जहाजभी छोड़ेवा नदी का नकसा देखें तो क्या गाने भी लगावें अपितु नहीं ऐसेही भगवान की मूर्ति कोदेखें तो क्या नमस्कार भी करें अपितु नहीं असली की तरह नकल के साथ वरताव कभी नहीं होता है, असल और नकलका ज्ञान तो पशु पक्षी भी रखते हैं ॥ यथा सवैया :