Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( ५८ ) झटही प्रवीन नर पटके वनाये कीर ताहकीर देखकर विल्ली हुन मारे है कागज के कोर २ ठौर२ नानारंग ताह फुल देख मधु कर दुर हीते छारे है चित्रामका चीता देख श्वान तासौं डरे नाह वनावटका अंडा ताह पक्षी हुन पारे है असल हूं नकल को जाने पशु पखी
राम मूढ नर जाने नाह नकल कैसे तारे है, पूर्वपक्षी-हां ठीकहै, असलकीजगह नकल काम नहीं देसक्ती परन्तु बड़ों की अर्थात् भगवन्तों की मूर्ति का अदब तो करना चाहिये।
उत्तर पक्षी-हमने तो अपने वड़ों की मूर्ति का अदब करते हुये किसीको देखा नहीं यथा अपने बाप की बावे की मूर्तियें बनाके पूज रहे हैं और उसकी न्हुँ (बेटे की बहु) उस स्व