Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( २७ ) मुक्ति होगी क्योंकि हम देखते हैं कि कई लोग • ऐसे हैं कि संस्कृतादि अनेक प्रकार की विद्या पढे हुये है परन्तु,अभक्ष्य, भक्षणादि अगम्यगमनादि अनेक कुकर्म करते हैं तो क्या उन की शुभगति होगी अपितु नहीं दुर्गति होगी यदि शुभ धर्म करेंगे तो तरेंगे और जो कई अनपढ़ नर नारी धर्म करते हैं और सुशील हैं दानादि परोपकारकरतेहैं तो क्याउनकी दुर्गति होगी अपितु नहीं अवश्य शुभगति होगी इत्यर्थः यथा राजनीतो॥ __पठकः पाठकश्चैव,येचान्य शास्त्रचिंतकाः । सर्वेव्यसनिनो मूर्खा, यःक्रियावान् स पण्डितः ॥१॥ अस्यार्थः ॥ __ संस्कृतादि विद्याके पढ़ने वाले पढ़ाने वाले येच अन्यमत मतांतरोंके शास्त्रोंके चिंतक सर्व