Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( २६ ) कभी निश्चय (इतबार) करना नहीं चाहिये । अरे भोले भाइयो यथा पूर्वोक्त मिथ्यातियों के बनाये हुये संस्कृतमयी ग्रंथ हैं उनमें शब्द तो शुद्ध हैं परन्तु उन के वचन तो सत्य नहीं क्योंकि शब्दशुद्धि कुछ और होती है अर्थात् लिखने पढ़ने की ल्याकत और सत्य बोल ना कुछ और होताहै यथा कचहरीमें दो गवाह गुजरे एक तो इल्मदार अर्बी फार्सी संस्कृत पढ़ा हुआ था बकायदे (विभक्तिलिंग भूतभवि प्यतादिकालसहित) बोलता था परन्तु इजहार झूठे गुजारता था और दूसरा बेचाराकुछ नहीं पढ़ा था सूधी देशी भाषा बोलता था परन्तु सत्य २ कहता था अब कहोजी सभामें आदर किसको होगा और दंड किसको अपितु चाहे पढ़ा हो न पढ़ा हो जो सत्य बोलेगा उसी की