Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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है परन्तु वह शरीर ऋपभदेवजीवाले गुणकरके रहित कार्य साधक नहीं ताते निरर्थक है । यथा :- दोहा जिनपद नहीं शरीर में, जिनपद चेतन मांह जिन वर्णनकछु और है,यह जिनवर्णननांह॥१
(१) भाव, यथा ऋषभदेवजी भगवान् ऐसे नाम कर्मवाला चेतन चतुष्टय गुण प्रकाशरूप आत्मा सो भाव ऋषभदेव कार्य साधक है।
(१) भाव निक्षेप यथा शरीर स्थित पूर्वोक्त चतष्टय गण सहित आत्मा सो भाव निक्षेप है परन्तु यह भी कार्यसाधक है यथाघृतसहित कुम्भ घृत कुम्भ इत्यर्थः॥
(१) प्रश्न-जड़ पूजक, हमारे आत्माराम आनन्दविजय सवेगीकृत सम्यक्त्वशल्योद्धार देशीभाषाका सम्बत्१९६० काछपा हुआ पृष्ठ