Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( १४ ) शीत स्निग्ध (शरदतर) स्वभाव ( तासीर) सो भाव कार्य साधक है ॥
(४) भाव निक्षेप, यथा पूर्वोक्त मिट्टी के कूजे में मिशरी भरी हुई सो भाव निक्षेप, यह भी कार्य साधक है, अब इसी तरह तीर्थंकर देवजी के नामादि चार और चारनिक्षेपों का स्वरूप लिखते हैं ॥
(१) नाम, यथा नाभिराजा कुलचन्दनन्दन मरुदेवीराणी के अंगजात क्षत्री कुल आधार सत्यवादि दृढ धर्मी इत्यादि सद्गुण सहित ऋषभदेव सो नाम ऋषभदेव कार्य साधक है क्योंकि यह नाम पूर्वोक्त गुणोंसे पैदा होता है यथा सूत्र गुण निष्पन्नं नामधेयं करेइ (कुर्वति) तथाव्युत्पत्ति से जो नाम होता है सो गुणसहित