Book Title: Satyartha Chandrodaya Jain arthat Mithyatva Timir Nashak
Author(s): Parvati Sati
Publisher: Lalameharchandra Lakshmandas Shravak
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( 2 ) अज्ञानता के कारण उसे इन्द्र मान लेते हैं पर न्तु वह इन्द्र नहीं अर्थात् कार्य साधक नहीं २ __तातें यह दोनों निक्षेपे अवस्तु हैं कल्पना रूप हैं क्योंकि इनमेंवस्तुकान द्रव्य है न भाव है और इन दोनों नाम और स्थापना निक्षेपों में इतना ही विशेष है कि नाम निक्षेप तो या वत् कालतक रहता है और स्थापनायावत्काल तक भी रहे अथवा इतरिये (थोडे) काल तक रहे क्योंकि मूर्ति फूट जाय टूट जाय अथवा उसको किसी और की थापना मान ले कि यह मेराइन्द्र नहीं यहतो मेरा रामचन्द्र है वा गोपी चन्द्र है, वो और देव है इन दोनों निक्षेपों को साननयोंमेंसे ३ सत्यनयवालों ने अवस्तु माना है क्योंकि अनुयोगद्वार सूत्रमें द्रव्य और भाव निक्षेपों पर तो सात२ नय उतारीहैं परन्तु नाम