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स्कन्धों को और चार बाह्य परमाणुओं को तत्त्व मानते हैं । भगवान् बुद्ध के विचार से दुःख, दुःखसमुदय, दुःखनिरोध और निरोधमार्ग ये चार आर्य सत्य अर्थात् तत्त्व हैं । जैनों के विचार से दो तत्त्व हैं— जीव और अजीव । इन्हीं का विस्तार पाँच तत्त्वों के रूप में किया गया है जीब, आकाश, धर्म, अधर्म और पुद्गल । उसी प्रकार सात तत्त्वों का वर्णन भी कुछ लोग करते हैंजीव, अजीव, आस्रव, संवर, निर्जर, बन्ध और मोक्ष । ये नास्तिक दार्शनिकों के विचार हैं ।
रामानुज-सम्प्रदाय के अनुसार सभी पदार्थ प्रमाण और प्रमेय के रूप से बटे हुए हैं । प्रत्यक्ष अनुमान और शब्द प्रमाण हैं और दृव्य गुण तथा सामान्य प्रमेय हैं । द्रव्यों के भी छः भेद हैं - ईश्वर, जीव, नित्यविभूति, ज्ञान, प्रकृति और काल । गुणों के दस भेद हैं-सत्त्व, रजस्, तमस्, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध, संयोग और शक्ति । सामान्य द्रव्य-गुण दोनों के रूप में होता है । ईश्वर पाँच प्रकार का है— पर, व्यूह, विभव, अन्तर्यामी और अर्चावतार । वैकुण्ठ में निवास करने वाले तथा मुक्त जीवों के द्वारा प्राप्य नारायण ही पर ईश्वर है । व्यूह चार तरह का होता है-वासुदेव, संकर्षण, प्रद्युम्न और अनिरुद्ध । यद्यपि भगवान् एक ही है परन्तु प्रयोजनवश उनके चार रूप हो गये हैं । उनमें ज्ञान, बल, ऐश्वर्य, वीर्य, शक्ति और तेज, इन छः गुणों से युक्त वासुदेव हैं । संकर्षण - व्यूह में ज्ञान और बल की प्रधानता रहती है। तथा वीर्य की प्रधानता रहती है । अनिरुद्ध में शक्ति और रहती है । भगवान् के अवतारों को है जो जीवों के हृदय में रहता है। का नियन्त्रण भी यही करता है । देव मन्दिर में प्रतिष्ठित ईश्वर अवतार
प्रद्युम्न में ऐश्वर्य
तेज की प्रधानता अन्तर्यामी ईश्वर वह सकते हैं तथा जीवों
है । इस प्रकार ईश्वर- द्रव्य का निरूपण किया गया ।
विभव कहते हैं । योगी लोग इसे पा
जीव ईश्वर के अधीन होते हैं, प्रत्येक शरीर में भिन्न हैं तथा नित्य हैं । ये तीन तरह के हैं बद्ध, मुक्त और नित्य । संसारी जीव बद्ध हैं, नारायण की उपासना से वैकुण्ठ में पहुँचे हुए जीव मुक्त हैं और संसार को कभी न छूने वाले अनन्त गरुड़ आदि जीव नित्य हैं । नित्य-विभूति से वैकुण्ठ - लोक समझा जाता है। ज्ञान का अर्थ है अपने आप में प्रकाशित होने वाला जिसे चैतन्य और बुद्धि भी कहते हैं । प्रकृति त्रिगुणात्मक तथा चौबीस तत्त्वों से बनी हुई है । ये चौबीस तत्त्व हैं - प्रकृति, महत्, अहंकार, मन, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच कर्मेन्द्रियाँ पाँच तन्मात्र और पाँच महाभूत । काल जड़ पदार्थ है और विभु है । इन सबों का स्पष्ट विवेचन यतीन्द्रमत- दीपिका में हुआ है ।