Book Title: Sanghpattak
Author(s): Harshraj Upadhyay
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'जिनवल्लभ सूचित करते हैं। और इसी प्रकार प्रश्नोत्तरैकषष्ठिशतककाव्य में भी · 'जिनवल्लभेन' पद से भी यही सूचित करते हैं । अतः उपसम्पदा पश्चात् ही आचार्य अभयदेवने 'गणि' पद प्रदान किया हो, ऐसा प्रतीत होता है। ___ इनके अलावा इन्हीं के पट्टधर युगप्रधान श्रीजिनदत्तसूरि खरचित गणधरसार्द्धशतक में ५० आर्याओं से 'सूरिजिनवल्लहो' की स्तुति करते हैं तथा अपने प्रणीत समस्त प्रन्थों में 'जिनवल्लभसूरि' को नमस्कार एवं उनकी स्तुति तो श्रद्धापूर्वक करते ही हैं। अतः ऊपरि उल्लिखित बाह्य एवं अन्तरङ्ग प्रमाणों से यह निश्चित है कि जिनवल्लभ गणि सुविहित [खरतरगच्छीय ] श्रीअभयदेवसरि के शिष्य एवं पट्टधर थे। ग्रन्थरचना। गणिवर १२वीं शती के उद्भट विद्वानों में से एक थे। इनका अलहारशास्त्र, छन्दशास्त्र, व्याकरण, दर्शन, ज्योतिष और सैद्धान्तिक विषयों पर एकाधिपत्य था। इनने अपने जीवनकाल में विविध विषयों पर सेकड़ों ग्रन्थों को रचना की थी, किन्तु देव दुर्विपाक से बहुत से अमूल्य प्रन्थ नष्ट हो गए। और इस वजह इस समय इनके केवल ४३ ग्रन्थ ही प्राप्त होते हैं। उपलब्ध प्रन्थों की तालिका निम्न है १ सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार प्रकरण (सार्द्धशतक), २ आगमिकवस्तुविचारसार प्रकरण (षडशीति ), ३ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, ४ द्वादशकुलक, ५ धर्मशिक्षा प्रकरण, संघपट्टक, ७ पौषधविधि प्रकरण, ८ प्रतिक्रमण समाचारी प्रा. गा. ४०, ९ आप्तपरीक्षा (उल्लेख-षडावश्यक बाला. तरुणप्रभसूरिकृत), १० प्रश्नोत्तरैकषष्ठिशतकाव्यम्, ११ शृङ्गारशतक (अनुपलब्ध), १२ स्वप्नाष्टकविचार (अनुपलब्ध), १३ अष्टसप्तति ( अनुपलब्ध), १४ सर्वजीवशरीरावगाहना स्तव प्रा. गा. , १५ श्रावकव्रतकुलक प्रा. गा. ,१६-२० आदिनाथादि चरित्र पञ्चक सं २१ वीरचरित्र (जयभववण) प्रा. गा. १५, २२ भावादिवारण स्तोत्र गा. ३०, २३ लघु अजितशान्तिस्तव ( उल्लासि०) प्रा. गा. १७, २४ पंचकल्याणकस्तव (सम्म नमिउण) प्रा. गा २६, २५ सर्वजिनपञ्चकल्याणक स्तव (पणमिय सुर०) प्रा. ना. ८, २६ पञ्चकल्याणक स्तोत्र (प्रीतिद्वात्रिंशत् ) सं पद्य १३, २७ कल्याणक स्तव (पुरन्दरपुरस्पर्द्धि) सं. पद्य ७, २८ महाभक्तिगर्भासर्वविज्ञप्तिका ( लोयालोय०) प्रा गा. २५, २९ पार्श्वस्तोत्र ( नमस्यद्गीर्वाण) सं. पद्म ३३, ३० पार्श्व स्तोत्र ( पायात्पाः ) सं. पद्य ३९, ३) पार्श्वस्तोत्र (सिरिभवणथंभणपुरे) प्रा. गा. ११, ३२ पाश्व स्तोत्र (त्वमेव माता त्वं पिता) सं. प. १, ३२ पावं स्तोत्र , ३४ महावीरविज्ञप्तिका ( सुरनरवइकयवंदण ) प्रा. गा. १२, ३५ वीतरागस्तुतिः ( देवाधीशकृते ) सं. प. १०, ३६ ऋषभजिन स्तोत्र ( सयलभुवणिद्ध ) प्रा. गा. ३३, ३७ क्षुद्रोपद्रवहरपार्श्वस्तोत्र ( नमिरसुरासुर) प्रा. गा. २२, १८ नंदीश्वरस्तोत्र (वंदिय नंदिय ) प्रा. गा. २५, ३९ सर्वजिनस्तोत्र (प्रीतिप्रसन्नमुख ) सं प. २३, ४. चतुर्विंशति जिन स्तोत्र (भीमभव. ) प्रा. गा. 1४४, ४१ ऋषभस्तुतिः (मरुदेवीनाभि०) प्रा. गा. ४, ४२ सरस्वती स्तोत्र ( सरभसलसद् ) सं. प. २५, ४३ नवकारस्तव (किं किं कप्पतरु ) अपभ्रंश १३ ।। १. पद्य ३२. २. पद्य १५९, १६.. For Private And Personal Use Only

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