Book Title: Sanghpattak
Author(s): Harshraj Upadhyay
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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२३
ग्रन्थकारप्रशस्तिः
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श्री मत्खरतरगच्छे श्रीमज्जिनभद्रसूरिशाखायाम् । श्रीपद्ममे रुसुगुरु- र्व्यवहार्यत्वयसुरं दुरि च ॥ १ ॥ तच्छिष्यो वाकूपतिरिह, श्रीमन्मतिवर्द्धनो गुरुर्जीयात् । श्रीमेरुतिलकनामा, तत्प्राथमकल्पिकः समभूत् ॥ २ ॥ तच्छिष्य प्रवरगुणौ, दयाकलशसद्गणिप्रभाद्युमणिम् । अमर माणिक्यसुगुरुः, समस्त सिद्धान्तधौरेयः ॥ ३ ॥ तच्छिष्येण सुविहिता, सुगमेयं साधुकीर्त्तिगणिनाऽपि । एकोनविंशमधिक, - षोडशसंवत्सरे प्रवरे ॥ ४ ॥ माघमासे शुक्लपक्षे, पञ्चभ्यां प्रवरयोगपूर्णायाम् । विबुधैः प्रपद्यमाना, समस्त सुखदायिनी भवतु ॥ ५ ॥
॥ इति श्रीजिनवल्लभसूरिकृत - सङ्घपहावचूरिः सम्पूर्णा ॥
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