________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
प्रियतमा को दूसरे पुरुष से बातें करते देखकर क्रोध करना, इन सबों से भरे हुए रहने हैं । रात्रि में किये गये तीर्थङ्करस्नात्र में तो ऐसे स्त्री-पुरुष एकत्रित होते हैं जिससे जिनालय में असमञ्जस प्रवृत्ति होती है इस लिए रात्रि में तीर्थङ्कर स्नात्र सर्वथा वर्जनीय है ॥ १८ ॥ फिर भी
'जिनमत०' इति-जिनोक्त मत से विरुद्ध प्रकार से किया गया अर्थात् अविधिपूर्वक किया गया स्नात्र ही केवल अहित के लिये होता है, इतनाही मत समझो किन्तु जिनमत विरुद्ध विधि से किये गये तप-अनशन आदि, चारित्र-देशविरति और सर्वविरति, दान-अभयदान आदि, तथा विनय वैयावृत्य आदि भी मुक्तिरूप फल के दायक नहीं होते हैं । क्यों कि जिनाज्ञा भी यदि अविधिपूर्वक की जाती है तो वह अशुभ फल देनेवाली होती है, और यदि विधिपूर्वक की जाती है तो शुभ फल देनेवाली होती है । फिर इन चैत्यवासियोंने जो अविधि क्रिया का ढोंग फैला रखा है उससे क्या अनन्तसंसार की प्राप्ति नहीं होगी ? होगी ही ॥ १९ ॥ फिर भी
'जिनगृह० ' इति-विधिपूर्वक अर्थात् शास्त्रोक्त प्रकारसे किये गये जिनभवन, जिनबिम्ब-भगवान की प्रतिमा, जिनपूजन, जिनयात्रा अर्थात् अष्टाह्निकादि महोत्सव, जिनप्रतिष्ठा, तथा दान-अभयदानादि, ता-अनशन आदि बारह प्रकार का तप, व्रत आदि अर्थात स्थूल प्राणातिपातविरमण और अभिग्रह आदि, गुरुभक्तिधर्माचार्य की भक्ति और श्रुतपठन अर्थात् सिद्धान्त का स्वाध्याय तथा सिद्धान्त के अर्थों का श्रवण आदि, ये सब आदरपूर्वक किये जाने पर भी यदि इन में कुमत, कुगुरु, कदाग्रह-कुत्सित आग्रह, कुबोध और कुदेशना का अंश मात्र भी मिल जाय तो ये जिनभवन आदि सब अनन्त संसार के कारण हो जाते हैं । जैसे उत्तम से उत्तम भोजन क्यों न हो ? यदि उसमें थोडासा भी विष मिल गया हो तो वह अनिष्टकारी हो ही जाता है ॥ २० ॥ ___ 'आक्रष्टुं ' इति-जैसे मच्छीमार बडिश-बन्सी ( मच्छी पकडने का कांटा) में मांस के टुकड़े को लगाकर मछलियों को आकृष्ट करते हैं उसी प्रकार ये धूर्त चैत्य. वासी लोग भगवान की प्रतिमा दिखलाकर श्रद्धालु श्रावक लोगों को आकृष्ट करते हैं। भगवान् के नाम पर अपनी इष्ट सिद्धि के लिये ये सुन्दर २ अन्तर्गृह और मठ, उन श्रावकों से बनवाते हैं । लक्ष्य तो केवल उनका अपने स्वार्थ पर है, परन्तु भगवान के नाम पर श्रावकों को ठगकर उनसे ये सब बनवाते हैं । तथा-यात्रा मात्र अर्थात्
For Private And Personal Use Only