Book Title: Sanghpattak
Author(s): Harshraj Upadhyay
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 131
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir राज के सन्य दिनानुदिन बढते ही जा रहे है । दुष्ट असंयतियों की पूजारूप दशम आश्चर्य प्रतिदिन अधिक से अधिक रूप में बलिष्ठ हो रहा है, मोहनीय-कर्मरूपी राजा के वे पूर्वोक्त सैन्य चारों और फैलकर अपना अधिकार जमा बैठे है। एसे समयमें यदि हमारे मुंहसे 'सदागम-शुद्धमार्ग' वह शब्द भी निकल जाता है तो मोहनीय कर्मरूपी राजा की आज्ञा में सदा तत्पर रहनेवाले आजकल के लोग हमारी कदर्थना-बेहालातकरडालते है । यह संसार नगर है, मोहनीय कर्म इसका राजा है, कुसङ्घ इस राजा का सैन्य है, भस्मग्रह महा-सामन्त-महामन्त्री है, और दुष्ट असंयतियों की पूजारूप दशम आश्चये उसका दूसरा सामन्त है ।। ४० ॥ ॥ इति श्रीजिनवल्लभसूरिविरचित सङ्घपट्टक का हिन्दी भाषानुवाद सम्पूर्ण ॥ ... ..... श्री जिनदत्तसूरि ज्ञानभंडार के प्रकाशन । गणधरसार्धशतक । षट्स्थानप्रकरणम् । ( अंतर्गतप्रकरणम् ।। धन्यशालिभद्रचरित्रम् । जयतिहुअणवृत्ति। धन्यचरित्रम्। दिवालीकल्पः। सामाचारीशतकम्। प्रश्नोत्तरसार्धशतकम् । कल्पसूत्र-कल्पलताब्याख्या। विशेषशतकः। प्राकृतव्याकरणं। संदेहदोलावलीवृत्तिः। विधिमार्गप्रपा। पंचलिंगिप्रकरणम् । सप्तस्मरणटीका। चैत्यवंदनकुलकवृति:(चिः) गाथासहस्त्री। अनुयोगद्वारसूत्रमूलं। अतिमुक्तकमुनिचरित्रम् । कल्पद्रुमकलिकाभाषांतरम् । गणधरसार्धशतकलघुवृत्तिः । संवेगरंगशाला। कल्पद्रुमकलिकाटीका। श्रीपालचरित्र प्राकृत-भाषांतर। पुण्यसारकथानकम्। द्वादशपर्वव्याख्यानभाषा । चर्चर्यादि ग्रन्थत्रयी। जीवविचारादि प्रकरणभाषा। जैन धातुप्रतिमा लेख। कल्याणमंदिरस्तोत्रटीका। प्राचीन हिंदी पद्य संग्रह । भक्तामरस्तोत्रटीका। वीशस्थानक तप विधि । द्वादशकुलकविवरणम् । रणसिंह चरियम् । For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 129 130 131 132