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करने आदि का कारण, स्थान, और समय आदि का निर्णय -इसादि।
(३) गोत्र प्रवर भाग-इसमें इस जाति के सम्पूर्ण ब्रामणों के गोत्र, प्रवर, वेद, शाखा, सूत्र, तथा गणेश, भैरव, देवी आदि और खाँप वा नख आदि को प्राचीन व्यवस्था तथा पोछे से मिली हुई उपाधियों आदिका वृत्तान्त-इत्यादि ।
(४) संस्कार भाग-इम में गर्भाधान, उपनयन, विवाह आदि सम्पूर्ण संस्कारों की शास्त्र मर्यादा का विधान, और जाति मर्यादानुसार उनके निमित्त द्रव्य लगाने आदि की प्राचीन व्यवस्था-इत्यादि। - (५) कुलाचार्य भाग-इस में यदुवंशियों से लगा के आज पर्यन्तके राजा महाराजाओं आदि को पुरोहिताई (गुरु यजमान वृत्ति) आदि सम्पादन करनेका प्रारम्भिक वृत्तान्त और राज्य मुत्सद्दी आदि होने का कारण-इसादि ।
(६) राज्य सन्मान भाग-इस में राजा महाराजाओंसे मिले हुये ग्राम आदि के निमित्तसे ताम्रपत्र तथा राज्यशासन पत्र मादि राज्य सन्मान सूचक सम्पूर्ण लेखों की नकलें-इत्यादि । - (७) जाति महिमा भाग-इसमें जाति मरयादास्थिर होने के समय से लगाके आज पर्यन्तके महानुभावों के जीवनचरित्र अर्थात् उनके किये हुये परोपकारी कार्यों का विस्तार पूर्वक वर्णन-इत्यादि। . (८) वंश वृक्ष भाग-इस में प्रत्येक खाँप वा नखके मूळ पुरुष से लगा के वर्तमान समय तककी वंश परम्परागत बंशापलिये ( पीदिये-कुरसी नामें) और मनुष्य गणना के सदृश समस्त देशों के पुष्करणे ब्राह्मणों की जन संख्या-इत्यादि ।
(९) जात्युमात भाग-इस में प्रचलित कुरीतियों से होने
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