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नोट-आचार्य भिक्षु ने तेरह द्वार के आठवें भाव द्वार में पुद्गलास्तिकाय को अनादि परिणामिक भाव में भी ग्रहण किया है।
.: रूपिषु तु · द्रव्येषु आदिमान् परिणामाऽनेकविधः ।
-तत्त्व० अ५ । सू ४३ का भाष्य
पुद्गल का आदिमान परिणाम अनेक प्रकार का है।
नोट-पुद्गल परमाणु स्वतन्त्रता में गति तथा अगुरुलघु-यह दो परिणाम नहीं करेगा।
स्वलक्षणं हि लोकस्य षड्द्रव्यसमवायात्मकत्वं, अलोकस्य केवलं आकाशात्मकत्वम्।
-प्रवचनसार अ २ । गा ३६ की प्रदीपिका वृत्ति
गोयमा ! अलोए झुसिर गोलसंठिए पण्णत्ते।
-भग० श ११ । उ १० । सू १०
सम्पूर्ण विश्व गोलाकार है। अलोक मध्य में पीले गोले की तरह है।
पूरणगलनान्वर्थसंज्ञत्वात् पुद्गलाः।
-तत्त्वराज० पृ० १९०
पूर्ण होना अर्थात् मिलना, बद्ध होना, गलना अर्थात् पृथक् होना-विछुड़ना जो मिले तथा जुदा हो वह पुद्गल । पूरणात् गलनात् इति पुद्गलाः परमाणवः ।
-~-न्यायकोष पृ. ५०२
पुद्गल परमाणु मिलते हैं तथा विलय होते हैं ।
शरीरवाङ मनः प्राणपानाः पुद्गलानाम: सुखदुःखजीवितमरणोपग्रहाश्च ।
-तत्त्व० अ ५ । सू १९, २०
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