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4/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन
में एक कच्छप का उदाहरण दिया गया है। 2 उस कछुए को शैवाल (काई) के बीच में रहने वाले एक छिद्र से चांदनी का सौंदर्य दिखायी दिया। उस मनोहर दृश्य को दिखाने के लिए जब वह कछुआ अपने साथियों को बुलाकर लाया तो उसे वह छिद्र ही नहीं मिला, जिसमें से चांदनी दिख रही थी। यह स्पक आत्मज्ञान के निजी अनुभव के लिए प्रयुक्त किया गया है। इस रूपक को आचारांग के व्याख्या साहित्य में समझाया गया है। 3 बौद्ध आगमों में भी कच्छप के रूपक के आधार पर भगवान् बुद्ध ने भिक्षुओं को मनुष्य जन्म की दुर्लभता का उपदेश दिया है। इस स्पक ने परवर्ती प्राकृत कथा-साहित्य को भी अनुप्राणित किया है। गीता में भी "स्थितप्रज्ञ" का स्वरूप कछुए के रूपक द्वारा प्रकट किया गया है।
आचारांग में इसी प्रकार के अन्य रूपक भी खोजे जा सकते हैं। एक स्थान पर कहा गया है कि जैसे बलशाली योद्धा युद्धभूमि में सबसे आगे रहकर शत्रुओं के साथ घमासान युद्ध कर विजय प्राप्त करता है, उसी प्रकार साधक को महान् उपसर्ग सहन करते हुए भी आत्म-चिन्तन में अंतिम समय तक स्थिर भाव से लीन रहना चाहिए। इस ग्रन्थ के नवें अध्ययन में महावीर की तपश्चर्या का वर्णन है। महावीर स्वामी का यह चरित्र अपने में कई कथातत्व समेटे हुए है, जिनसे महापुरुषों के चरित्र लिखने का आधार मिला है। सूत्रकृतांगसूत्रकृतांग में जैन दर्शन एवं अन्य दार्शनिक मतों का प्रतिपादन है। अन्य दर्शनों के सिद्धान्तों की समीक्षा के उपरान्त जैन दर्शन के तत्वों आदि का निरूपण करना इस ग्रन्थ का मुख्य विषय है।। छठे अध्ययन में भगवान् महावीर की स्तुति का वर्णन है। इसमें विभिन्न उपमानों का प्रयोग किया है। ऐरावत, सिंह, गंगा, गरुड आदि की तरह महावीर भी लोक में सर्वोत्तम थे। इस तरह की उपमाओं ने कथा नायक के स्वरूप-निर्धारण में महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की है।
इसी सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध के छठे एवं सातवें अध्ययनों में आद्रककुमार और गोशालक तथा उदक और गौतम स्वामी के बीच में हुए संवादों का उल्लेख है। इन संवादों ने परवर्ती कथाओं के कथोपकथनों के गठन में सहयोग किया है।
इसी सूत्र के द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पुण्डरीक का दृष्टान्त दिया हुआ है। आगमिक कथाओं का यह अनुपम उदाहरण है। एक सरोवर जल और कीचड़ से भरा हुआ है। उसके बीच में कई कमल खिले हैं। बीच में एक श्वेत कमल है। चारों दिशाओं से आने वाले मोहित पुरुष उस सफेद कमल को प्राप्त करने के प्रयास में कीचड़ में फंस जाते हैं। किन्तु वीतरागी पुरुष सरोवर के किनारे खड़ा रहकर ही कमल को अपने पास बुला लेता है।
इस रूपक में सरोवर संसार के समान है। उसमें जल कर्मरूप है तथा कीचड़ विषय-भोग का प्रतीक। साधारण कमल जनपद के प्रतीक हैं और श्वेत कमल राजा का। चारों मोहित पुरुष चार मतवादी हैं और वीतरागी श्रमण सद्धर्म का प्रतीक है। सूत्रकृतांग के इस रूपक का विश्लेषण करते हुए डा.ए.एन. उपाध्ये ने कहा है- "इस रूपक में निहित आशय के अतिरिक्त भी एक बात मुझे बिलकुल स्पष्ट यह प्रतीत होती है कि राजा की छत्रछाया में ही धर्म प्रचार पाते हैं और इसलिए राजाश्रय प्राप्त करने में पूरी-पूरी प्रतिद्वन्द्रता होती थी।20 सूत्रकृतांग के सन्दर्भ में इस रूपक के अध्ययन में विशेष प्रयत्न की आवश्यकता है क्योंकि राजा और कमल भारतीय कथा-साहित्य में प्रसिद्ध प्रतीक रहे हैं।
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