Book Title: Prakrit Katha Sahitya Parishilan
Author(s): Prem Suman Jain
Publisher: Sanghi Prakashan Jaipur

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Page 96
________________ 86/प्राकृत कथा-साहित्य परिशीलन से दीक्षा लेने नहीं गये, क्योंकि उन्हें पूर्व मे दीक्षित अपने ही छोटे भाई मुनियों को प्रणाम करना होगा। इस मान के काँटे ने बाहुबली को केवलज्ञान नहीं होने दिया। आगे के जैन पुराणों में इसका दूसरा कारण उल्लिखित है। बाहुबली भरत की भूमि पर तप नहीं करना चाहते थे। अतः उनके इस हठाग्रही चित्त ने उन्हें केवलज्ञान नहीं होने दिया। प्राकृत कथाओं में बाहुबली मान-कषाय के लिए प्रतीक बन गये थे। जयन्तीचरित पर मलयप्रभसूरि की वृत्ति में 56 प्राकृत कथाएँ हैं। उनमें मान के लिए बाहुबली की कथा दी गयी है। प्राकृत कथाकोश में भी बाहुबली के मान पर कथा संकलित है। भावपाहुड में मान-कषाय के लिए बाहुबली का उदाहरण दिया गया है। (v) मानगज से अवतरण: बाहुबली जैसे विकसित व्यक्तित्व वाले तपस्वी को भी मानरूपी गज पर आस्ढ़ रहना हितकर नहीं हुआ। अतः कथा की एक परम्परा में ऋषभदेव की पुत्री ब्राह्मी तपस्वी बाहुबली को इस मानगज से उतरने की सलाह देती है- कि आपको छोटे भाइयों को नमस्कार नहीं करना है, चारित्रिक गुणों को नमन करना है। अहंकार को तिरोहित किये बिना आत्मा की ऊंचाई कैसे नापोगे ? इसी बात को एक राजस्थानी कवि कहता है: वीरा म्हारा गज थकी उत्तरो।. गजचड़यां केवल नहीं होसी रे।। कथा की दूसरी परम्परा में स्वयं भरत, बाहुबली को निवेदन करते हैं - इस नश्वर संसार में कौन भरत और कहाँ उसकी भूमि ? आप तो असीम हैं, अतः सीमा से ऊपर उठिये। बाहुबली इन संकेतों को गहराई से पकड़ते हैं और उनका अहंकार तत्क्षण तिरोहित हो जाता है। वे केवलज्ञानी हो जाते हैं (जिनसेनकृत महापुराण)। बहु-आयामी व्यक्तित्वराहुबली की कथा जैन साहित्य की उन प्रमुख कथाओं में से एक है, जो सार्वभौमिक और जन-जीवन से जुड़ी हुई हैं। इस देश में उन महापुरुषों को प्रतिष्ठा मिली है, जो मर्यादा के रक्षक रहे हैं। मर्यादापुरुषोत्तम राम जितने जन-जीवन के नजदीक है, उतने निर्गुण परमब्रह्म राम नहीं। बाहुबली को तीर्थंकर न होते हुए भी साहित्य में जो प्रतिष्ठा मिली है, वह उनके मर्यादा-रक्षक होने के कारण। भरत यदि सम्राट् होने के कारण प्रसिद्ध हैं तो बाहुबली उस सम्राट् की अनीति, लालच एवं क्रोध पर विजय पाने के कारण जन-मानस के शिरमौर है। बाहुबली के कथानक में एक प्रच्छन्न मोटिफ का प्रयोग हुआ है। वह है- विशालता, ऊंचेपन का बोध। प्राकृत कथाओं में उनके शरीर को भरत से ऊंचा बताया गया है। बल में वे श्रेष्ठ प्रमाणित होते हैं। भाई के प्रति आत्मीयता के शिखरों को भी उन्होंने छुआ है, जब वे विजयी होने पर भी भरत को जमीन पर नहीं गिरने देते। यह उनकी करुणा की विशालता है। चक्र-प्रहार के रूप में भरत के क्रोध को वे अपनी विजय की क्षमा से जीतते हैं। शक्तिशाली की क्षमा क्या होती है, उसके मेरु है-बाहुबली। भारत ने समस्त पृथ्वी का शासक बनने की आकांक्षा से दिग्विजय की। उनकी इस लोभ की वृत्ति ने भाई को भी युद्ध- भूमि पर ला खड़ा किया। किन्तु इसका उत्तर बाहुबली ने अद्भुत त्याग से दिया। विजयश्री उनके चरणों पर थी। पृथ्वी की सम्पदा के वे स्वामी थे। किन्तु वैराग्य द्वरा उन्होंने दिखा दिया कि भौतिक सम्पत्ति का मोह, लोभ बड़ी क्षुद्र वृत्ति है। विशालता तो Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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